- इनका जन्म 13वी शताब्दी में फलोदी(जोधपुर) के निकट कोलुमुंड में हुआ।
- जिंदराव खींची से देवल चारणी की गाय बचाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
- गोरक्षक, प्लेग रक्षक, व उंटो के देवता के रूप में विशेष मान्यता। लक्ष्मण के अवतार।
- चैत्र अमावस्या को कलुमुंड जोधपुर के प्रमुख मंदिर में मेला भरता है।
- ऊंटों की पालक जाति राईका(रेबारी) जाती इन्हें अपना आरध्य देव मानती हैं।
- ‘पाबूजी की फड़’ नायक जाति के भोपो द्वारा ‘रावणहथा’ वाद्य के साथ बांची जाती हैं।
गोगाजी चौहान
- जन्म: ददरेवा (चूरू) में 11 वीं सदी में।
- सांपो के देवता
- इन्हें जाहर पीर भी कहते हैं।
- गोगाजी ने गौरक्षा एवं मुस्लिम आक्रांताओं ( महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर किए
- वर्षा के बाद हल जोतने से पहले किसान गोगाजी के नाम की ‘गोगा राखड़ी’ हल और हाली के बांधता है।
- गोगाजी के जन्म स्थल ददरेवा को शीर्ष मुड़ी तथा समाधी स्थल: ‘गोगा मेडी’ को ‘धुरमेडी’ भी कहते हैं।
- भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) को विशाल मेला भरता है।
- गोगाजी के थान ‘खेजड़ी वृक्ष ‘ के नीचे होते हैं।
रामदेवजी
- ‘ रमसा पीर ‘, ‘रुणिचा रा धनी ‘ नाम से प्रसिद्ध लोकदेवता।
- जन्म: भादवा सुदी 2 सवंत् 1462 को उण्डकश्मीर, शिव तहसील (बाड़मेर) में हुआ।
- समाधी: रूणेचा में
- कामड़िया पंथ के प्रवर्तक । कृष्ण के अवतार
- गुरु: बलिनाथ थे।
तेजाजी
- खड़नाल (नागौर) के नागवंशीय जाट।
- अजमेर जिले के प्रमुख लोक देवता।
- लाछा गुजरी की गाय मेरों से छुड़ाने हेतु प्रणोत्सर्ग ।
- मुख्य थान: खडनाल, अजमेर के सुरसुरा, भवन्ता, ब्यावर व सेंदरिया।
- भाद्रपद शुक्ल दशमी को मेला (पशु मेला) भरता है।
देवनारायण जी
- मूल देवरा: गोंठा दड़ावत (आसींद भीलवाड़ा) में।
- समाधी: देवमाली(ब्यावर)।
- गुर्जर जाति के लोग इन्हें विष्णु के अवतार मानते हैं।इनकी फड़ गुजर भोपे बांचते हैं।
- मेला भाद्रपद शुक्ला छठ व सप्तमी को भरता है।
हड़बुजी
- गुरु: बलीनाथ। रामदेवजी के समाज सुधार कार्य के लिए आजीवन कार्य किया।
- इनके पुजारी सांखला राजपूत होते हैं।
- बेंगटी (फलौदी) मै मुख्य पूजा स्थल।
मेंहाजी मांगलिया
- बापणी (जोधपुर) में इनका मंदिर।
- भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी को मांगलिया राजपूत मेहजी की आठम मनाते हैं।
कल्लाजी
- जन्म: मारवाड़ के समियाना गंव में। प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ इनके गुरु थे।
- चित्तौड़ के तीसरे शाके में अकबर के विरूद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
- ‘रनेला ‘ इस वीर का सिद्ध पीठ हैं।
- भूत - पिशाच व रोगी पशु का इलाज।
- चार हाथ के लोकदेवता।
मलिनाथजी
- जन्म: 1358 ई. में मारवाड़ में हुआ।
- ये भविष्यदृष्टा एवम् चमत्कारी पुरुष थे।
- तिलवाड़ा (बाड़मेर) में मंदिर।
- चैत्र कृष्ण एकादशी को 15 दिन का मेला (पशु मेला भी) भरता है।
तलिनाथजी
- जालौर के प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी लोकदेवता।
देव बाबा
- पशु चिकित्सा का अच्छा ज्ञान।
- गुजरो व ग्वालों के पालनहार नगला जहाज (भरतपुर) में मंदिर।
- भाद्रपद शुक्ल पंचमी को मेला भरता है।
मामा देव
- विशिष्ठ लोकदेवता जिनकी मिट्ठी - पत्थर की मूर्ति नहीं होती बल्कि गांव के बाहर प्रतिष्ठित लकड़ी का एक विशिष्ठ तोरण होता है।
डूँगजी - जवाहरजी
- शेखावाटी क्षेत्र के लोक देवता।
- ये धनी लोगों को लूटकर उनका धन गरीबों एवं जरूरतमंदो में बांटते थे।
लोक देवियाँ
करणी माता
- बीकानेर के राठौड़ शासकों की कुलदेवी।
- ‘चूहों वाली देवी’ के नाम से विख्यात।
- जन्म: सुआप गांव के चारण परिवार में।
- मंदिर : देशनोक (बीकानेर)।
- करणी जी के काबे: इनके मंदिर के चुहे।
जीण माता
- चौहान वंश की आरध्या देवी।
- ये धंध राय की पुत्री एवं हर्ष कि बहन थी।
- मंदिर में इनकी अष्टभुजी प्रतिमा हैं।
- मंदिर का निर्माण रैवासा(सीकर) में पृथ्वीराज चौहान प्रथम के समय राजा हट्टड़ द्वारा।
कैला देवी
- करौली के यदुवंशी(यादव वंश) की कुल देवी। इनकी आराधना में लांगुरिया गीत गाए जाते हैं।
- मंदिर: त्रिकूट पर्वत की घाटी(करौली) में। यहां नवरात्रा में विशाल लक्खी मेला भरता हैं।
शिला देवी
- जयपुर के कछवाहा वंश की आराध्य देवी/ कुल देवी।
- इनका मंदिर आमेर दुर्ग में हैं।
अन्नपूर्णा
- महाराजा मानसिंह पं. बंगाल के राजा केदार से ही सन् 1604 में मूर्ति लाए थे।
जमुवाय माता
- ढूंढाड के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी।
- इनका मंदिर जमुवारामगढ़, जयपुर में हैं।
आईजी माता
- सिरवी जाति के क्षत्रियों की कुलदेवी ।
- इनका मंदिर बिलाड़ा(जोधपुर) में हैं।
- ये रामदेवजी की शिष्या थी।
- इन्हें नवदुर्गा का अवतार माना जाता हैं।
राणी सती
- वास्तविक नाम ‘नारायणी ‘ ।
- ‘दादीजी’ के नाम से लोकप्रिय
- झुंझनु में रांणी सती के मंदिर में हर वर्ष भाद्रपद अमावस्या को मेला भरता है।
आवड़ माता
- जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी । इनका मंदिर तेमडी पर्वत (जैसलमेर) पर हैं।
स्वांगिया जी माता
- सुगनचिडी को आवड माता का स्वरूप माना जाता हैं।
शीतला माता
- चेचक की देवी। बच्चो की संरक्षिका देवी।
- जांटी (खेजड़ी) को शीतला मानकर पूजा की जाती हैं।
- मंदिर: चाकसू(जयपुर) जिसका निर्माण जयपुर के महाराजा श्री माधोसिंह जी ने करवाया था।
- चैत्र कृष्ण अष्टमी को वार्षिक पूजा। व इस मंदिर में विशाल मेला भरता है।
- इस दिन लोग बास्योड़ा मानते हैं।
- पुजारी कुम्हार होते हैं।
- इनकी पूजा खंडित प्रतिमा के रूप में की जाती हैं।
सूगाली माता
- आऊवा के ठाकुर परिवार की कुलदेवी ।
- इस देवी प्रतिमा के दस सिर और चौपन हाथ हैं।
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