राजस्थान के लोकदेवता एवं लोकदेवियां


पाबूजी राठौड़
  •  इनका जन्म 13वी शताब्दी में फलोदी(जोधपुर) के निकट कोलुमुंड में हुआ।
  • जिंदराव खींची से देवल चारणी की गाय बचाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
  • गोरक्षक, प्लेग रक्षक, व उंटो के देवता के रूप में विशेष मान्यता। लक्ष्मण के अवतार।
  • चैत्र अमावस्या को कलुमुंड जोधपुर के प्रमुख मंदिर में मेला भरता है।
  • ऊंटों की पालक जाति राईका(रेबारी) जाती इन्हें अपना आरध्य देव मानती हैं।
  • ‘पाबूजी की फड़’ नायक जाति के भोपो द्वारा  ‘रावणहथा’ वाद्य के साथ बांची जाती हैं।

गोगाजी चौहान
  •  जन्म: ददरेवा (चूरू) में 11 वीं सदी में।
  • सांपो के देवता
  • इन्हें जाहर पीर भी कहते हैं।
  • गोगाजी ने गौरक्षा एवं मुस्लिम आक्रांताओं ( महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर किए
  • वर्षा के बाद हल जोतने से पहले किसान गोगाजी के नाम की ‘गोगा राखड़ी’ हल और हाली के बांधता है।
  • गोगाजी के जन्म स्थल ददरेवा को शीर्ष मुड़ी तथा समाधी स्थल: ‘गोगा मेडी’ को ‘धुरमेडी’ भी कहते हैं।
  • भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) को विशाल मेला भरता है।
  • गोगाजी के थान ‘खेजड़ी वृक्ष ‘ के नीचे होते हैं।

रामदेवजी
  • ‘ रमसा पीर ‘, ‘रुणिचा रा धनी ‘ नाम से प्रसिद्ध लोकदेवता।
  • जन्म: भादवा सुदी 2 सवंत् 1462 को उण्डकश्मीर, शिव तहसील (बाड़मेर) में हुआ।
  • समाधी: रूणेचा में
  • कामड़िया पंथ के प्रवर्तक । कृष्ण के अवतार
  • गुरु: बलिनाथ थे।

तेजाजी
  • खड़नाल (नागौर) के नागवंशीय जाट।
  • अजमेर जिले के प्रमुख लोक देवता।
  • लाछा गुजरी की गाय मेरों से छुड़ाने हेतु प्रणोत्सर्ग ।
  • मुख्य थान: खडनाल, अजमेर के सुरसुरा, भवन्ता, ब्यावर व सेंदरिया।
  • भाद्रपद शुक्ल दशमी को मेला (पशु मेला) भरता है।

देवनारायण जी
  • मूल देवरा: गोंठा दड़ावत (आसींद भीलवाड़ा) में।
  • समाधी: देवमाली(ब्यावर)।
  • गुर्जर जाति के लोग इन्हें विष्णु के अवतार मानते हैं।इनकी फड़ गुजर भोपे बांचते हैं।
  • मेला भाद्रपद शुक्ला छठ व सप्तमी को भरता है।

हड़बुजी
  • गुरु: बलीनाथ। रामदेवजी के समाज सुधार कार्य के लिए आजीवन कार्य किया।
  • इनके पुजारी सांखला राजपूत होते हैं।
  • बेंगटी (फलौदी) मै मुख्य पूजा स्थल।

मेंहाजी मांगलिया
  • बापणी (जोधपुर) में इनका मंदिर।
  • भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी को मांगलिया राजपूत मेहजी की आठम मनाते हैं।

कल्लाजी
  • जन्म: मारवाड़ के समियाना गंव में। प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ इनके गुरु थे।
  • चित्तौड़ के तीसरे शाके में अकबर के विरूद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
  • ‘रनेला ‘ इस वीर का सिद्ध पीठ हैं।
  • भूत - पिशाच व रोगी पशु का इलाज।
  • चार हाथ के लोकदेवता।

मलिनाथजी
  • जन्म: 1358 ई. में मारवाड़ में हुआ।
  • ये भविष्यदृष्टा एवम् चमत्कारी पुरुष थे।
  • तिलवाड़ा (बाड़मेर) में मंदिर।
  • चैत्र कृष्ण एकादशी को 15 दिन का मेला (पशु मेला भी) भरता है।

तलिनाथजी
  • जालौर के प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी लोकदेवता।

देव बाबा
  • पशु चिकित्सा का अच्छा ज्ञान।
  • गुजरो व ग्वालों के पालनहार नगला जहाज (भरतपुर) में मंदिर।
  • भाद्रपद शुक्ल पंचमी को मेला भरता है।

मामा  देव
  • विशिष्ठ लोकदेवता जिनकी मिट्ठी - पत्थर की मूर्ति नहीं होती बल्कि गांव के बाहर प्रतिष्ठित लकड़ी का एक विशिष्ठ तोरण होता है।

डूँगजी - जवाहरजी
  • शेखावाटी क्षेत्र के लोक देवता।
  • ये धनी लोगों को लूटकर उनका धन गरीबों एवं जरूरतमंदो में बांटते थे।


लोक देवियाँ

करणी माता
  • बीकानेर के राठौड़ शासकों की कुलदेवी।
  • ‘चूहों वाली देवी’ के नाम से विख्यात।
  • जन्म: सुआप गांव के चारण परिवार में।
  • मंदिर : देशनोक (बीकानेर)।
  • करणी जी के काबे: इनके मंदिर के चुहे।

जीण माता
  • चौहान वंश की आरध्या देवी।
  • ये धंध राय की पुत्री एवं हर्ष कि बहन थी।
  • मंदिर में इनकी अष्टभुजी प्रतिमा हैं।
  • मंदिर का निर्माण रैवासा(सीकर) में पृथ्वीराज चौहान प्रथम के समय राजा हट्टड़ द्वारा।

कैला देवी
  • करौली के यदुवंशी(यादव वंश) की कुल देवी। इनकी आराधना में लांगुरिया गीत गाए जाते हैं।
  • मंदिर: त्रिकूट पर्वत की घाटी(करौली) में। यहां नवरात्रा में विशाल लक्खी मेला भरता हैं।

शिला देवी
  • जयपुर के कछवाहा वंश की आराध्य देवी/ कुल देवी।
  • इनका मंदिर आमेर दुर्ग में हैं।

अन्नपूर्णा
  • महाराजा मानसिंह पं. बंगाल के राजा केदार से ही सन् 1604 में मूर्ति लाए थे।

जमुवाय माता
  • ढूंढाड के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी।
  • इनका मंदिर जमुवारामगढ़, जयपुर में हैं।

आईजी माता
  • सिरवी जाति के क्षत्रियों की कुलदेवी ।
  • इनका मंदिर बिलाड़ा(जोधपुर) में हैं।
  • ये रामदेवजी की शिष्या थी।
  • इन्हें नवदुर्गा का अवतार माना जाता हैं।

राणी सती
  • वास्तविक नाम ‘नारायणी ‘ ।
  • ‘दादीजी’  के नाम से लोकप्रिय
  • झुंझनु में रांणी सती के मंदिर में हर वर्ष भाद्रपद अमावस्या को मेला भरता है।

आवड़ माता
  • जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी । इनका मंदिर तेमडी पर्वत (जैसलमेर) पर हैं।

स्वांगिया जी माता
  • सुगनचिडी को आवड माता का स्वरूप माना जाता हैं।

शीतला माता
  • चेचक की देवी। बच्चो की संरक्षिका देवी।
  • जांटी (खेजड़ी) को शीतला मानकर पूजा की जाती हैं।
  • मंदिर: चाकसू(जयपुर) जिसका निर्माण जयपुर के महाराजा श्री माधोसिंह जी ने करवाया था।
  • चैत्र कृष्ण अष्टमी को वार्षिक पूजा। व इस मंदिर में विशाल मेला भरता है।
  • इस दिन लोग बास्योड़ा मानते हैं।
  • पुजारी कुम्हार होते हैं।
  • इनकी पूजा खंडित प्रतिमा के रूप में की जाती हैं।

सूगाली माता
  • आऊवा के ठाकुर परिवार की कुलदेवी ।
  • इस देवी प्रतिमा के दस सिर और चौपन हाथ हैं।

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