राजस्थान में किसान आंदोलन

 

बिजौलिया किसान आंदोलन


  • यह किसान आंदोलन 1897 से 1941 तक चला था

  • बिजौलिया भीलवाड़ा जिले में स्थित है।

  • भारत में संगठित कर्षक आंदोलन प्रारंभ करने को श्रेय बिजौलिया ठिकाने को ही जाता हैं।

  • इस आंदोलन का नेतृत्व सर्वप्रथम साधु सीताराम दास द्वारा किया गया था।

  • 1916 में इस आंदोलन से विजय सिंह पथिक जुड़े, जिनका मूल नाम भूप सिंह था।

  • विजय सिंह पथिक ने ' उमाजी के खेड़ा '  को इस आंदोलन का केंद्र स्थल बनाया था।

  • 1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर जी. विजय राघवाचार्य के प्रयास से किसानों को भूमि दे दी गई। 


बेंगू किसान आंदोलन


  • बंगू किसान आंदोलन 1921 से 1925 के बीच चला। 

  • बिजौलिया किसान आंदोलन से प्रेरित पड़ोस की जागीर बेंगू (चित्तौड़गढ़)  मेनाल (भीलवाड़ा) नामक स्थान पर किसान एकत्रित हुए और लाग बाग, बेगार और ऊंचे लगान के विरुद्ध किसानों ने आंदोलन करने का निश्चय किया।


  • बेग किसान आंदोलन का नेतृत्व राजस्थान सेवा संघ के मंत्री श्री रामनारायण चौधरी ने किया।


  • बेगू किसान आंदोलन को 'बोल्शेविक क्रांति' की संज्ञा भी दी जाती है।


  • 1923 ई. में बेंगू ठाकुर अनूप सिंह ने किसानों से समझौता कर उनकी सब मांगें मान ली। परंतु मेवाड़ सरकार और रेजिडेंट ने राजस्थान सेवा संघ और  अनूप सिंह के बीच हुए इस समझौते को 'बोल्शेविक फैसले' की संज्ञा दी।


  • बेंगू के किसान 13 जुलाई, 1923 ई. को गोविंदपुरा में एकत्र हुए, जहां सेना ने गोलियां चला दी। इस हत्याकांड में 'रूपाजी' और कृपाजी' नामक दो किसान शहीद हो गए थे।

  • सेना के अत्याचारों से किसानों का मनोबल गिरता देख पथिक जी ने स्वयं बेंगू किसान आंदोलन का नेतृत्व संभाला । 1923 ई. में पथिक जी को गिरफ्तार कर उन्हें 5 वर्ष की सजा दी गई।


अलवर किसान आंदोलन


  • अलवर राज्य के खालसा क्षेत्र के राजपूत किसानों ने आंदोलन प्रारंभ किया। 


  • 14 मई, 1925 ई. को कमांडर छाजु सिंह ने किसानों पर मशीनगनें चलाने के आदेश दिए व गांव में आग लगा दी। फलस्वरूप सैकड़ों स्त्री-पुरुष व बच्चे हताहत हुए। 'तरुण राजस्थान' एवं 'प्रताप' नामक समाचार पत्र ने इस घटना का विवरण प्रकाशित किया।


  • महात्मा गांधी ने नीमूचाणा हत्याकांड को 'जलियांवाला बांग कांड' से भी वीभत्स बताया और उसे 'दोहरी डायरशाही' की संज्ञा दी।


  • 1921 ई. में अलवर राज्य में जंगली सुअरों को अनाज खिलाकर होदों में पाला जाता था। ये सुअर किसानों की खड़ी फसलों को नष्ट कर देते थे। इन सुअरों को मारा नहीं जा सकता था, क्योंकि इनको मारने पर राज्य की पाबंदी थी।


  • सुअरों के उत्पात के कारण 1921 ई. में राज्य के किसानों ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया। अंतत: महाराणा ने होदों को हटा दिया तथा कृषकों को सूअर मारने की इजाजत दे दी।


  • मेव किसान आंदोलन अलवर व भरतपुर रियासत के मेवात क्षेत्र के किसानों ने 1932 में डॉ. मोहम्मद अली के नेतृत्व में आंदोलन शुरू कर दिया।


मारवाड़ किसान आंदोलन


  • मारवाड़ किसान आंदोलन 1923 से 1947 ई. तक के बीच चला। 


  • 1923 ई. में श्री जयनारायण व्यास ने 'मारवाड़ हितकारिणी संभा' का गठन किया और इसके माध्यम से मारवाड़ के किसानों को लागतों तथा बेगार के विरुद्ध जागृत करने का प्रयास किया।


  • मारवाड़ की दशा' तथा 'पोपाबाई का पोल' नामक पंपलेटों में भी जागीरी जुल्मों का मार्मिक वर्णन किया गया।


  • जोधपुर राज्य में 'तरुण राजस्थान' पर प्रतिबंध लगाते हुए 20 जनवरी, 1930 ई. को जयनारायण व्यास, आनंदराज सुराणा तथा भंवरलाल सर्राफ को बंदी बना लिया।


 शेखावाटी किसान आंदोलन


  • बिलाऊ, डूंडलोद, मलसीसर, मंडावा तथा नवलगढ़, जो 'पंचपाणे" कहलाती थीं, शेखावटी की पांच प्रमुख जागीरें थी।


  •  शेखावटी क्षेत्र में कुल 421 जागीरदार थे।


  • राज्य सरकार द्वारा भेजे गए कमीशन ने किसानों की कुछ मांगों का समर्थन किया। इस पर ठिकानों को किसानों की कुछ मांगें माननी पड़ी व आंदोलनकारियों को सद्व्यवहार का आश्वासन देना पड़ा।


  • प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं ने अकाल राहत कार्यों में शेखावटी के कृषकों को बड़ी सेवा की, किंतु समाज सेवी प्रजामंडल सदस्य जमनालाल बजाज को गिरफ्तार कर उनके जयपुर प्रवेश पर रोक लगा दी गई।


  • इसके बाद में यह किसान आंदोलन जयपुर में हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में लोकप्रिय सरकार के गठन के पश्चात् समाप्त हुआ।


  • 1932 में झुंझुनू के चौधरी रिसाल की अध्यक्षता में जाट महासभा का अधिवेशन हुआ।


 सीकर किसान आंदोलन


  • सीकर आंदोलन का सूत्रपात्र जाट किसानों द्वारा किया गया।  सीकर में 56 प्रतिशत भूमि जाट किसानों के पास थी। इस क्षेत्र में भू राजस्व की अनेक विषमताओं के अतिरिक्त अनेकों लाग-बाग, मापा आदि कर थे। इस प्रकार उपज का अधिकांश भाग ठिकानेदार व ठिकानों के अधिकारियों में बंट जाता था।


  • 1922 ई. में राव राजा ठा. कल्याण सिंह द्वारा उपज का 50 प्रतिशत लगान लेना प्रारंभ करते ही किसानों ने इसका विरोध किया। 


  • इस किसान आंदोलन के नेता रामनारायण चौधरी व हरि ब्रह्मचारी का सीकर तथा जयपुर राजा की सीमा में प्रवेश निषिद्ध कर दिया। 


  • महिलाओं में जागृति के लिए सरदार हरलाल सिंह की पत्नी किशोरी देवी के नेतृत्व में सीकर जिले के कटराथल गांव में 1934 में एक सम्मेलन हुआ, जिसमें 10 हजार महिलाओं ने भाग लिया। सम्मेलन की प्रमुख वक्ता श्रीमती उतमा देवी (ठाकुर देशराज की पत्नी) थी। श्रीमती दुर्गा देवी शर्मा, श्रीमती रमा देवी, श्रीमती फूला देवी आदि अन्य प्रमुख महिलाएं थी, जिन्होंने इस सम्मेलन में भाग लिया। 


  • जयसिंहपुरा किसान हत्याकांड -21 जून, 1934 को डूंडलोद के ठाकुर के भाई ईश्वर सिंह ने डूंडलोद में जयसिंहपुरा गांव में खेत जोत रहे किसानों पर हमला कर गोली चलाकर उनकी हत्या कर दी। 


  • कूदन गोली कांड - सीकर के कूदन गांव में किसानों पर 1935  में गोली चलाई गई, जिसमें 4 किसान मारे गए। गोठड़ा व पलथाणा में गोली कांड हुआ। 26 मई, 1935 को पूरे देश में सीकर दिवस मनाया गया।


  • कूदन गोली कांड की चर्चा ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में भी हुई। 


  •  खूड़ी गोलीकांड 1935 ई. में सीकर में खूड़ी गांव में किसानों पर कैप्टन वेब ने लाठी चार्ज करवाया, जिसमें 4 किसान मारे गए। यह विवाद किसान दूल्हें द्वारा घोड़ी पर तोरण मारने के कारण हुआ। 


  • 1931 ई. में राजस्थान जाट क्षेत्रीय सभा की स्थापना हुई। 


  • 1947 ई. में देश के वातावरण में बदलाव के साथ ही किसानों की समस्त मांगें मानते हुए लाग-बाग व बेगार प्रथा समाप्त कर दी गई।


दूधवा खारा (चुरू) किसान आंदोलन


  • 1944 में यहां के जागीरदारों ने बकाया राशि के भुगतान का बहाना कर अनेक किसानों को उनकी जीत से बेदखल कर दिया। किसानों का नेतृत्व चौधरी हनुमान सिंह ने किया।


  • बीकानेर प्रजा परिषद के अध्यक्ष पं. मघाराम वैद्य ने दूधवा खारा के किसानों की समस्या एवं जागीरदारों के अत्याचारों को उजागर किया। 


  • चुरू जिले के कांगड़ गांव में भी किसानों पर अत्याचार हुए ।


डाबड़ा किसान आंदोलन


  • लोक परिषद तथा किसान सभा के नेता 13 मार्च, 1947 ई. को आयोजित किसान सम्मेलन में भाग लेने हेतु डाबड़ा (डीडवाना- नागौर) पहुंचे।


  •  लगभग 600 जाट किसान सम्मेलन में सम्मिलित होने जा रहे थे, किंतु जागीरदार के लगभग 600 सशस्त्र लोगों ने उन्हें घेरा, लेकिन इसके बाद बंदूकों, तलवारों और भालों का प्रयोग दोनों पक्षों की ओर से किया गया। इसमें चुन्नीलाल शर्मा व जग्गू जाट शहीद हुए । किसानों का नेतृत्व मथुरादास माथुर ने किया था। 


  • हाबड़ा हत्याकांड का समाचार शीध्र ही देशभर में फैल गया। मुम्बई से प्रकाशित 'वंदे मातरम', जयपुर के 'लोकवाणी' , जोधपुर के 'प्रजा सेवक़ और दिल्ली के 'हिंदुस्तान टाइम्स' आदि समाचार पत्रों ने इस जघन्य हत्याकांड की घोर निंदा की।


बूंदी किसान आंदोलन


  • पं. नयनूराम शर्मा के नेतृत्व में 1922 ई. में बूंदी के किसानों ने बेगार, लाल-बाग और ऊंची लगान दरों के विरुद्ध आंदोलन किया। 


  • स्त्रियों ने भी इस आंदोलन में भाग लिया। 


  • राज्य ने दमन का सहारा लिया। 


  • यह किसान आंदोलन बरड़ क्षेत्र में हरिभाई किंकर रामनारायण चौधरी और पं. नयनूराम शर्मा ने चलाया।


  • अप्रैल 1923 में डाबी में संपन्न हुए किसानों के सम्मेलन पर पुलिस ने गोली चला दी, इस आंदोलन में 'नानकजी भल' घटनास्थल पर ही शहीद हो गए।


टोंक किसान आंदोलन


  • टोंक में पिंडारी शासक अमीर खां पिंडारी के उत्तराधिकारी इब्राहिम खां के अदूरदर्शी प्रशासन से 1920-21 ई. में प्रथम जन आंदोलन हुआ, जिसमें किसानों की सक्रिय भूमिका रही।


  • अजगर सभा- शाहपुरा के राजा हुकुम सिंह के निर्देशन में इस सभा का गठन हुआ। अ-अहीर,ज-जाट, ग-गुर्जर, र-राजपूत। इन चारों शब्दों का संबंध उपरोक्त चार जातियों से था तथा कहा गया कि हम सभी क्षत्रिय है। आपस में परस्पर भेद नहीं होना चाहिए।


  • राजस्थान की देशी रियासतों में रचनात्मक गतिविधियां प्रारंभ करने का श्रेय प्रजामंडलों को है। प्रजामंडल की स्थापना का उद्देश्य रियासती कुशासन को समाप्त कर उनमें व्याप्त बुराइयों को दूर करना तथा नागरिकों को उनके मौलिक अधिकार दिलवाना है। संगठनों का तात्कालिक उद्देश्य अपनी-अपनी रियासतों से संबंधित नरेशों की छत्रछाया में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।


Faramer Movement in Rajasthan



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